ये ज़िंदगी हमेशा, दो राहों पर लाकर भटकाती है,
ये ज़िंदगी हमेशा, दो राहों पर लाकर भटकाती है,
एक को चुन लो तो, दूजे की चाहतें जगाती है।
ये ख़्वाहिशें कहाँ, घर की चौखट तक लाती हैं,
ये ऐसे सफ़र पर होती हैं, मंज़िलें जिसकी कभी नहीं आती हैं।
जो पहाड़ों से हो दिल्लगी, तो गहराइयाँ सागर की बुलाती हैं,
कश्तियों के कारवाँ को, घाटियों की यादें सताती हैं।
सूरज को रही जलन कि, रातें आशिकों को बहुत लुभाती हैं,
और तन्हा चाँद की मजबूरियाँ, उसे पंछियों की उड़ानें दिख नहीं पाती हैं।
दिल की जिद्द क़दमों को हर मोड़ पर ठहराती है,
जो छूट जाता है पीछे कहीं, उसे हीं धड़कनों में बसाती है।
वो पगडंडियां काई जमी, जो गिराकर हसीं उड़ाती हैं,
कभी खामोश बैठो तो, पैरों की थकान चुराती है।
वो खुली खिड़कियाँ जो, नजारों की कीमत बताती है,
कभी दहशत भरे पलों से मिला, ख़्वाबों को तोड़ दिखाती है।
वो बारिश की बूँदें जो, दिल पर दस्तक दे जाती है,
कभी आंसुओं में घुलकर, आँखों की जलन बढ़ाती है।
हाँ, ये दो राहें, कहानियां अनोखी सुनाती है,
कभी फूलों की महक सी तो कभी काँटों की चुभन से मिलाती है।