राम रसिक जब हो गया, नवरस उसके संग।
राम रसिक जब हो गया, नवरस उसके संग।
रोम-रोम पुलकित सदा, हर्षित गहे उमंग।।
राम-नाम सुनकर श्रवण, हो जाता है तृप्त।
उर अर्जित संतोष कर, रहे भक्ति में लिप्त।।
राम-राम कह लीजिए, जीवन का रस आप।
जिससे अंतस का सभी, शीतल होता ताप।।
राम सकल सुख धाम है, जपिए पावन नाम।
जिनके सुंदर श्री चरण, बसते चारों धाम।।
मन मंदिर में राम हों, जिह्वा जपता नाम।
शरणागत “पाठक” रहे, भजता बस श्री राम।।
:- राम किशोर पाठक (शिक्षक/कवि)