एक से दूसरा
मुक्तक
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एक से दूसरा दीप मिलकर जले।
हाथ थामे पथिक नित्य पथ पर चले।
रात अपनी स्वयं जगमगा दीजिए।
स्नेह के भाव जब हैं हृदय में पले।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य
मुक्तक
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एक से दूसरा दीप मिलकर जले।
हाथ थामे पथिक नित्य पथ पर चले।
रात अपनी स्वयं जगमगा दीजिए।
स्नेह के भाव जब हैं हृदय में पले।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य