लक्ष्मण रेखा
लक्ष्मण रेखा
यह मात्र एक लकीर नहीं थी।
यह वह अदृश्य रेखा थी,
जिसने युगों तक
स्त्री के पगों को सीमित किया,
और उसके मन को
मर्यादा के नाम पर बाँध दिया।
कहते हैं
वह रक्षा के लिए खींची गई थी।
पर रक्षा और नियंत्रण के बीच की दूरी कितनी सूक्ष्म होती है,
यह कोई सीता से पूछे
जिसने उस रेखा को लाँघने का साहस किया
और इतिहास में आज भी अपराधिनी कहलाती है।
लक्ष्मण रेखा का चाक-चौबंद खाका
केवल एक राक्षस से नहीं बचाता था,
वह स्त्री को उसकी स्वतंत्र जिज्ञासा,
उसकी स्वायत्तता,
उसकी आत्म-इच्छा से भी बचाता था
या यूँ कहो,
उसे उन सब से वंचित करता था।
पौरुष ने सदैव रेखाएँ खींचीं
कभी भूमि पर, कभी हृदय पर,
कभी धर्म में, कभी प्रेम में।
और हर बार कहा
“यह तुम्हारी मर्यादा है।”
कितना अद्भुत छल था यह!
मर्यादा का अर्थ सुरक्षा से जोड़ दिया गया,
ताकि बंधन का विरोध भी कर्तव्य कहलाए।
और इस प्रकार, स्त्री युगों से
एक छद्म मर्यादा के जाल में जीती रही,
जहाँ पार जाना अपराध था,
और भीतर रहना पुण्य।
रामायण ने एक आदर्श प्रस्तुत किया
पर यह आदर्श पुरुष दृष्टि का आदर्श था।
महान गाथा में स्त्री केवल पात्र थी,
नायिका नहीं।
वह मर्यादा की मूर्ति थी,
पर मनुष्य नहीं
क्योंकि मनुष्य प्रश्न करता है,
और मर्यादा उत्तरों से डरती है।
लक्ष्मण रेखा पवित्र नहीं थी
वह पितृसत्ता की रेखा थी,
जिसे धर्म की शाही स्याही में डुबोकर
इतिहास ने अनगिनत
सीताओं के चारों ओर खींचा।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’