मांगना भूल है
जब तुमने फूल मांगे
वसंत की गंध से भी तीखे काँटे
हथेलियों में उतर आए।
तब जाना
सौंदर्य का मूल्य रक्त है।
जब तुमने सुख मांगा
आकाश ने दुख की छाया डाल दी,
और तुम्हारी रोशनी
स्वयं अपने धुएँ में घिर गई।
जीवन
किसी संधि-पत्र की तरह नहीं,
जिसमें केवल उजाला लिखा हो;
उसके हाशिये पर
मृत्यु की स्याही पहले से लगी होती है।
तुम मांगते रहे राष्ट्र, धर्म,
पहचान के नए नक़्शे
और इतिहास ने तुम्हें दिया
विभाजन का अंधकार।
जब किसी ने कहा — “हिंदू राष्ट्र”,
उसी क्षण पाकिस्तान भी जन्मा;
मानो दो विरोधी तट
एक ही लहर से निकले हों।
क्योंकि हर मांग का एक प्रतिमांग होता है,
हर स्वर का एक प्रतिध्वनि
जो लौटकर हृदय को चीर जाती है।
मांगो मत
मांगना अधूरापन है।
जिसे पाना कहते हो,
वह पहले से तुम्हारे भीतर है
मिट्टी, देह, आकाश और श्वास के रूप में।
बस देखो
जो है, वही पूर्ण है।
फूलों के साथ काँटे भी
किसी ब्रह्म के अनिवार्य प्रमाण हैं।
और आनंद
वह नहीं जो मिलता है,
वह है
जब कुछ भी माँगना शेष न रहे।