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10 Nov 2025 · 1 min read

कुछ दर्द बिना दस्तक दिए, चले आते हैं,

कुछ दर्द बिना दस्तक दिए, चले आते हैं,
आंसुओं का सैलाब नहीं, खामोशी की चादर ओढ़ाते हैं।
मुस्कराहट छल बनकर चली आती है, एहसास मगर खुद को भरमाते हैं,
उम्मीदों की चिंगारियां उड़ाकर, सपनों की चिताएं जलाते हैं।
यूँ तो नसीबों की थी बेबफाई, अब हाथों से लकीरें भी चुराते हैं,
अपनी उदास झोलियों के, चिथड़े भटककर उठाते हैं।
जिसे सूरज ने अँधेरा दिया, उससे सितारे भी कतराते हैं,
दुआएं उठती नहीं हैं अधरों पर, जिन्हें धड़कनों की गहराईओं में छिपाते हैं।
पहाड़ों पर ठहरी निःशब्दिता से, भीगी शामों को सजाते हैं,
तन्हाइयों को यादें सौंप कर, बेहोशियों के हो जाते हैं।
अधूरी ख्वाहिशों के कारवां को, कोरे पन्नों का सफर कराते हैं,
एक चीख़ जो अनसुनी रही, उसे रगों में हीं अभी तक बहाते हैं।
शायद कहानी हीं अलग सी थी, जो किरदारों की कीमत लगाते हैं,
वो रंगमंच की साजिशें रही, जो जीवन का हर रंग चुराते हैं।
लहरों को लगी जिद की चलो, अब तो कश्ती डुबाते हैं,
किनारों से टकराकर मरना हीं तो है, कुछ गुनाह भी करके इतराते हैं।

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