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23 Oct 2025 · 1 min read

*धन-पशुओं में अहंकार है, अपने धन-भंडार का (गीत)*

धन-पशुओं में अहंकार है, अपने धन-भंडार का (गीत)
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धन-पशुओं में अहंकार है, अपने धन-भंडार का

आम आदमी जैसी यों तो, देह इन्होंने पाई
आम आदमी से लेकिन है, गहरी इनकी खाई
बिच्छू जैसा विष पाओगे, इनके धन-व्यवहार का

निर्धन का यह घोर घमंडी, तिरस्कार ही करते
यह पिचके गुब्बारे हैं पर, हवा द्रव्य की भरते
खुद के होने का भ्रम इनको, ईश्वर के अवतार का

अर्थी के यह संग-संग धन, कितना ले जाऍंगे?
कितने रुपयों से यह अपनी, अर्थी सजवाऍंगे?
एक दिवस इनका धन होगा, बाकी सब संसार का
धन-पशुओं में अहंकार है, अपने धन-भंडार का
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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