माया की काया
काया की मन में बसी माया
मानसिकता की काली छाया
ईष्या मोह कुविचार अकर्म से
चलता रहता यह मस्ताना घोड़ा
उल्टे पुलटे ऊंची निगाह सवारी
इन्सान इन्सानियात इन्साफ की
बुरे भावनाओं की ये हैं महरानी
क्षण रंक को राजा बनाती माया
पलभर में राजा को रंक बनाती
अधर्म कर्म तृष्णा की लालची
नेक विहीनहेरा फेरी बेईमानी
शैतानी सेहरा साज सज्जा
भोले भाले नेक विचारों को
तवज्जो ना दे मन को भ्रमाता
मकड़ी जैसा जाल फैलाकर
मंजिल ठिकाना मोह छीनता
निर्मोही अहिंसावादी मधुहीन
पल में बिषात्क उलझन लाता
माया मोह के मन मंदिर बसता
आगे पीछे मतलबी पूजा करता
समझ ना पाता कभी जीवन में
आखरी वक्त दुःख बुढ़ापा देता
संस्कार सम्मान सेहत औलाद
बिगाड़ रुहनगर चला जाता ये
हे! इन्सान माया का तो मज़ा है
मस्त निराला मतलब वाला हैं
भूलकर भी इसे ना अपनाना
हृदय में कभी ना बसने देना ।
**********