“मुलाक़ात की साज़िशें"
एक ख्वाब की तरह, तुम मिले फिर से,
बंजर जमीं पर जज्बातों के, फूल खिले फिर से,
यूँ तो हक़ में यादें रहीं, भूली-बिसरी बातें रहीं,
ज़िन्दगी की किताब पर, नामों की सौग़ातें रहीं।
पर वक़्त की गली में, आँधियाँ कुछ यूँ चलीं,
तू धड़कते दिल से, आ मिला फिर से।
बारिश रही दूरियों की, जो थमने से कतराती रहीं,
तेरे दर की भीगी खुश्बुएं, मेरी साँसों को महकाती रहीं,
फिर एक मोड़ मिला तुझे जीने का,
आँखों के दर्द को पीने का,
हवाओं के इशारे रहे, आसमान की गवाही रही,
मैं सितारों से टूट गिरी, यूँ क्षितिज की राह मिली फिर से।
ये मिलते हाथ एक भ्रम रहे, या एहसासों की दिल्लगी रही,
किसी जादूगर की कलाकारी या दुआओं की अदाकारी रही,
फिर एक वक़्त रहा घर आने का, लकीरों से लड़ जाने का,
अधूरी ख्वाहिशों के नज़ारे रहे, शिद्दतों की सिफारिश रही,
यूँ मुलाक़ात की साजिशों में, वो खोयी शाम मुझसे मिली फिर से।