ख़्वाहिशों में खुशियां और झोली में गम होगा,
ख़्वाहिशों में खुशियां और झोली में गम होगा,
जितनी चाहतों का बोझ, उतना हीं सुकुन कम होगा।
कैसे महसूस होगी, भरी तश्तरियों की कीमत,
अगर खाली तश्तरियों से ना, नसीब पर सितम होगा।
जो आएँगी बहारें तो, फूलों का करम होगा,
पर पतझड़ों का भी तो, करता इन्तजार कोई सनम होगा।
नर्म धूप में हाथों को, थामने कई शख्स आ जाएंगे,
पर जो बर्फीली वादियों में, बना लिहाफ वही तो हमकदम होगा।
जब जुस्तजू में नन्ही – नन्ही खुशियों का भी तराना होगा,
गम भी तो तुझे टुकड़ों में, तोड़ता नया फ़साना होगा।
बेमतलब सी लगेगी, हाथों पर फैली लकीरें सारी,
जब इन्हीं हाथों से करना, खुद के ख़्वाबों को दफ़न होगा।
मुस्कराहट खुशियों की निशानियां, बनकर घूमती मिलेंगी,
पर गम छुपाने को, ये हथियार भी क्या कम होगा।
इस आवारगी में मेरी तन्हाईयाँ मुकम्मल होगी,
यूँ मेरे सुकुन में, मेरी धड़कनों का गबन होगा।