एक हम थे जो नज़दीक आते रहे
एक हम थे जो नज़दीक आते रहे
एक वो थे जो दूरी बढ़ाते रहे
प्रेम की वो तो मदिरा पिलाते रहे
और अपने कदम डगमगाते रहे
अपने तो प्यार की है कहानी यही
रूठते वो रहे हम मनाते रहे
जानते थे वफ़ा उनकी फ़ितरत नहीं
बेवजह अपने दिल को दुखाते रहे
सोच लो भर सकोगे उड़ाने नहीं
तुम अगर खुद को इतना डराते रहे
मांगते तो वो हमसे रहे माफियां
पर खतावार हमको बताते रहे
जिनको पैरों पे अपने किया था खड़ा
वक़्त पर वो ही आँखें दिखाते रहे
देखिए आप जज़्बा हमारा ज़रा
चोट खाकर भी हम मुस्कुराते रहे
नासमझ थे या मासूम हम ‘अर्चना’
जो न समझे हमें वो बनाते रहे
डॉ अर्चना गुप्ता
13.08.2025
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