ऋतू ऋतू सरगम सरगम....
हर अश्क़ कि बूंदो मे ऋतू सा ख्याल था
कभी रिमझिम रिमझिम बरखा सा
कभी बेखौफ बारिश कि बूंदो सा
हर अश्क़ कि क़ीमत न तुल्य हो पायेगी
हर ख्याल मे एक नया सवाल था
न जवाब मिल पायेगे ना सवाल रुक पाएंगे
फिर भी ख्याल बदलते ऋतू सा
फिर शांत अविचल हो जायेगा
उमड़ उमड़ कर मोतियों संग
अश्क़ पूछ पढे फिर से
क्या तुम भी बदल पाउगी खुद क़ो
ऋतू ऋतू सरगम सरगम
दीपिका सराठे