उम्र
जीवन को
बिन अभिभावक जीते-जीते
बहुत थक गया था
राह के रोड़े
बुजुर्ग समझकर
बहुत सताने लगे थे
उम्र भी बहुत कुछ
समझाने लगी थी
अचानक एक खयाल आया
मैंने अपने पिताजी की
एक बड़ी सी तस्वीर घर में लगा दी
पिताजी की आँखों में आँखे मिलाई
रोया भी,खूब हँसा भी,
पर खुश हुआ
मेरी उम्र घट गयी
स्फूर्ति मिली,ताजगी मिली
पिताजी आये
उनके होने की अनुभूति
हृदय में स्थिर हो गयी
मैं बच्चा हो गया।
-अनिल मिश्र