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8 Jul 2023 · 1 min read

मेघों के साथ साथ मन भी

मेघों के साथ साथ मन भी
उड़ने से बाज नहीं आता
उड़ उड़ जन जन को जगा रहा
हर दिल की सांकल खटकाता
+
दामिनि दिपदिप दिपदिप करती
रास्ता दिखाती जाती है
जो विरही हैं उनके उर को
पीड़ा असीम पहुंचाती है
+
उड़ते मेघों पर मेघ आज
वसुधा को जलमय करने को
पावसी छटा का रंग आज
सबके अंतस मे भरने को
+
अलमस्त पवन नर्तन करती
रोमावलि को सिहराती है
कल्पना तुम्हें पा जाने की
काया में आग लगाती है ।।
********************* – महेश चन्द्र त्रिपाठी

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