लोकतांत्रिक आंदोलन बनाम जनवादी लोकतांत्रिक आंदोलन
शहीद कामरेड शंकर गुहा नियोगी जी की ✍️ कलम से
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साथियों,,
लाल जोहार
लोकतांत्रिक आंदोलन मुख्यतः प्रतिक्रियावादी निष्ठुर ताकत के खिलाफ व्यापक एवं निहत्यी जनता का संगठित मोर्चेबंदी का संघर्ष होता है।
किसी भी राजसत्ता को समाप्त करने के लिए पहले उसे विचारधारात्मक रूप से समाप्त करना चाहिए, तत्पश्वात् राजनैतिक रूप से समाप्त किया जा सकता है।
लोकतांत्रिक आंदोलन के जरिये हम उसे विचारों के माध्यम से खत्म करते हैं, जबकि जनवादी लोकतांत्रिक संघर्ष में निहत्थी जनता के साथ-साथ किसानों की एक लड़ाकू वाहिनी काम करती है जो किसानों को प्राप्त हुए अधिकारों की रक्षा करती है। राजहरा का मजदूर आंदोलन, लोकतांत्रिक आंदोलन के माध्यम से गुजरते हुए उच्च शिखर तक पहुँच चुका है।
दूसरा है, अर्द्ध-सामंती ठेकेदार, साहूकार एवं दलाल नौकरशाही पूँजी या उसके रक्षक नौकरशाह। राजहरा में अर्द्ध-सामंती ठेकेदारों के विरुद्ध दस हजार मजदूरों की संग्रामी एकता संघर्षशील है। लोकतांत्रिक संघर्ष में शहर आदि के मजदूर, बुद्धिजीवी और व्यापक जन-समुदाय भाग लेता है। जनवादी लोकतांत्रिक संघर्ष, मजदूरों के नेतृत्व में संगठित किसान जनता की भूमि से सम्बंधित समस्याओं का निपटारा करने के लिए होता है। जनवादी लोकतांत्रिक संघर्ष में किसान सामंतवाद एवं सामंतवादी तौर-तरीके के खिलाफ जीवन-प्रण से संघर्ष करते हैं और धीरे-धीरे संघर्षरत कृषक सत्ता की तरफ अग्रसर होते हैं।
आम जनता सामान्यतः शांतिवादी होती है। जनता जांदोलन करती है, प्रजातांत्रिक हक की रक्षा के लिए बैनट एवं बुलेट के सामने छाती फुलाकर निहत्यी खड़ी रहती है।
परंतु शांति आखिर तक बनी रहेगी या नहीं, यह निर्भर करता है राजसत्ता के प्रतिनिधियों, अभिजात वर्ग एवं नौकरशाहों की विवेषना के ऊपर।
कोई भी जनप्रिय आन्दोलन तभी हो सकता है जब उसकी माँग सही हो। सही माँग को ठुकराना व जनता का दमन करना, अगर राजसत्ता के प्रतिनिधियों का लक्ष्य है तो अशांति और हिंसा का राज कायम होता है। लोकतांत्रिक संघर्ष मुख्यतः रोजी-रोटी की माँग को लेकर, प्रजातांत्रिक अधिकार को लेकर, विभिन्न राजनैतिक समस्याओं को लेकर या दमन और अत्याचार के खिलाफ होता है। इन संवर्षों में से सभी में हम भाग लेते हैं और कुछ में पूर्ण विजय प्राप्त करते हैं तथा अन्य संघर्षों में आशिक सफलता ही हाथ लगती है। इन संघर्षों का असली लाभहमारे संगठनों को होता है। एकता मजबूत होती है। हर क्षेत्र में एकता का सूत्रपात होता है, संगठन का जुझारूपन बढ़ता है और प्रतिक्रियावादी शासक वर्ग का चेहरा बेनकाब होता है।
* जनवादी लोकतांत्रिक संघर्ष में किसान अपना अधिकार हासिल करता है और पिकार की रक्षा करते-करते शक्ति संचित करता है।*
यह शक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए सहायक सिद्ध होती है।
कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर जनवादी लोकतांत्रिक संघर्ष में कूद पड़ें एवं धीरे-धीरे इन संघर्षों में व्यापक किसान जनता को नेतृत्व दें। इस जनवादी लोकतांत्रिक संघर्ष का मुख्य स्वरूप होगा सामंतवादी एवं साहूकारों द्वारा अन्यायपूर्ण कब्जा की हुई जमीन गरीब और भूमिहीन किसानों में वितरित करना एवं सरकारी कर्मचारियों (पटवारी, जंगल एवं पुलिस आदि विभागों के कर्मचारियों) के अत्याचारों का प्रतिरोध करना आदि।
लाल जोहार
राम चरण नेताम
छत्तीसगढ़ माईंस श्रमिक संघ
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा
दल्ली राजहरा