*धर्म के दस लक्षण: दस दोहे*
धर्म के दस लक्षण: दस दोहे
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1)
क्षमा अभी सबको करो, नहीं रखो कुछ बैर।
हाथ जोड़ मॉंगो क्षमा, मॉंगो सब की खैर।।
2)
सत्य सदा धारण करो, सच की चलना राह।
सच को कभी न छोड़ना, उत्तम यह ही चाह।।
3)
मार्दव मृदुता श्रेष्ठ है, सरल हृदय आगार।
जिसमें कोमलता भरी, सद्गुण का भंडार।।
4)
आर्जव अर्थ सरल बनो, टेढ़ा रखो न भाव।
रहो सरल सबके लिए, मन में हो मधु चाव।।
5)
शुचिता जीवन में रखो, हों पवित्र सब काम।
दाग नहीं धब्बा नहीं, यों हो जग में नाम।।
6)
संयम गुण सबसे बड़ा, मन पर कसो लगाम।
इंद्रिय काबू में रहे, हर क्षण ले प्रभु-नाम।।
7)
तप का अर्थ विशेष यह, करो कष्ट स्वीकार।
सुख-दुख समझो एक-से, जीवन के आधार।।
8)
त्याग करो फल का सदा, करो कर्म निष्काम।
त्यागी का होता नहीं, कभी नाम बदनाम।।
9)
बनो अकिंचन सब तरह, सारे संग्रह छोड़।
अनासक्ति है श्रेष्ठ पथ, दो जीवन को मोड़।।
10)
ब्रह्मचर्य में रम रहा, वचन और मन कर्म।
जिसमें तनिक न वासना, समझा जीवन-मर्म।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451