"सुबह-ओ-शाम"
रात अंधेरे में सुबह-ओ-शाम देखते हैं,
ज़िंदगी का इक नया इंतज़ाम देखते हैं
चलो चराग़ फ़िर से रौशन होने लगी है,
आँखों से हवाओं का इंतकाम देखते हैं
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
रात अंधेरे में सुबह-ओ-शाम देखते हैं,
ज़िंदगी का इक नया इंतज़ाम देखते हैं
चलो चराग़ फ़िर से रौशन होने लगी है,
आँखों से हवाओं का इंतकाम देखते हैं
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”