पत्र
धूमिल स्मृति के साथ स्वच्छ अंतर्मन से लिख रहा हूँ पाती…
तुम्हारे परिवर्तन का नाद हूँ मैं
तुम्हारे स्पंदन का संगीत हूँ मैं
तुम्हारे उद्विग्नता की तन्द्रा हूँ मैं
तुम्हारे मनोभाव का कथन हूँ मैं
तुम्हारे दिल का भेद हूँ मैं
तुम्हारे झूठ का पर्दा हूँ मैं
तुम्हारी शीतलता की उष्णता हूँ मैं
तुम्हारे सूखे घाव का निदान हूँ मैं
तुम्हारे शून्यता की पूर्णता हूँ मैं
तुम्हारे मौन की वाणी हूँ मैं
तुम्हारे आरंभ का अंत हूँ मैं
तुम्हारे दृढ़ अभिमान का विनम्रता हूँ मैं
तुम्हारी नयनों का वियोग हूँ मैं
तुम्हारी कुटिलता की मुस्कान हूँ मैं
तुम्हारे आनन का स्वरूप हूँ मैं
प्रिय….
इस अपठित पत्र में जो तुम्हारे अज्ञात पते पर पहुँच गया है मैंने अपना परिचय भेजा है
जिसे तुम्हें खोलकर अवश्य पढ़ना होगा
इससे पहले कि पत्र पिघल जाएँ….