मेरा प्रेम
मेरा प्रेम
जिसे मैं शब्दों में, वाक्यों में,
पंक्तियों में, उक्तियों में, और कविताओं में
अभिव्यक्त नहीं कर सकता…
यह एक ऐसा बोध है जिसे मैं अति जटिलता से समेट पाता हूँ, मेरा हृदय मनोभावों से भरा है, मेरी भावनाएँ, बहुधा सक्रिय हैं, क्रियाशील हैं… मेरा प्रेम ज्येष्ठ माह की उस मृद और सुवासित बयार की भांति हैं, जो वृक्षों के मध्य से बहती हुई अपने संग, एक सौम्य शांति लाती है, एक ऐसी अनुभूति, एक ऐसी संवेदना एक ऐसी शालीनता जो किसी को क्षति नहीं पहुँचा सकती…
यह मुझे हर्ष और उल्लास से भर देती है, मानो मैं कोई नवजात शिशु हूँ, मेरा अन्तर्मन आनंद से भर जाता है…
मेरे पास व्यक्त करने लिए, उच्चारित करने के लिए शब्द नहीं हैं, निःशब्द हूँ मैं…
मेरा प्रेम मेरे लिए सर्वोच्च श्रेष्ठ प्रेम है, मेरा प्रेम मुझे मुझसे ही मुक्त कर देता है जहाँ मैं स्वयं
होकर जान सकूँ, पहचान सकूँ कि मुझे मेरे लिए प्रेम किया जा रहा है…
मेरा प्रेम एक तप्त आलिंगन की भाँति है,
जो मुझे अनुग्रह से भर देता है…
मेरा प्रेम सहृदय, और उदार है,
इतना आभामयी, इतना दीप्तिमान है कि इस प्रेम में समाहित हो मैं आनंद से परमानन्द में प्रवेश कर जाता हूँ…
मेरा प्रेम जीवन से भरपूर है, यह कभी न समाप्त होने वाली ज्योति है, यह मुझे सुख और शांति देता है एक ऐसी अनुभूति, एक ऐसा अनुभव जिसका कभी इतिश्री नहीं होगा….
मेरे लिए मेरा प्रेम, एक तरंगिणी की तरह बहता है, मेरा अन्तर्मन उमड़ पड़ता है..
जैसे ही मेरा प्रेम मेरे समक्ष आता है, मेरा प्रेम रमणीय, दीप्तिमान, उज्ज्वल, तेजस्वी, और शोभित ज्योतिपुंज की भाँति मेरे अन्तर्मन में सर्वदा आसीन हो जाता है…
मेरा प्रेम मधुर सुर, लय, ताल, स्वर, संगीत है,
कण्ठ में साक्षात सरस्वती आसीन है…
मेरे प्रेम के मधुर पुष्परस शब्द, मेरे अंतःकरण को स्पर्श करते हैं, मुझे ढाढस देते हैं…
मेरे प्रेम की मधुर मुस्कान, पक्षियों के मृद कलरव, सुखद और कर्णप्रिय संगीत की तरह मेरे अन्तर्मन को सुवासित स्नेहिल मन्त्रमुग्ध कर देती है…
मेरे प्रेम की मनोहर, इंद्रधनुष जैसी दिव्य, अलौकिक, अद्भुत दृष्टि मुझे विस्मित कर अपनी ओर वशीकृत करती है…
मेरे प्रेम द्वारा लिया गया चुंबन, ज्वाला की तरह, जला कर मुझे तृप्त करता है…
एक ऐसा प्रेम, जो अद्वितीय, अनुपम, अतुलनीय और अद्भुत है….
मैं समर्पित हूँ अपने प्रेम के लिए…
सर्वदा सत्यनिष्ठ प्रेम, विश्वसनीय प्रेम
मेरा प्रेम….
अभिलाषा, तृष्णा, और लिप्सा की मेरी आकांक्षा में प्रतिदिन वृद्धि हो रही है…
मेरे प्रेम:-
तुम्हारी उन्मत्त आँखें मुझे बेसुध कर देती हैं, तुम्हारे नरम, मुलायम अधर क्या कहूँ,
पंखुड़ी इक गुलाब की सी, मुझे दिग्भ्रमित करते हैं…
सुशोभित कुंडलित लहराते केश,
तुम्हारी सुगंधित श्याम वर्ण काया,
तुम्हारी सौंदर्य रमणीयता की कोई सीमा नहीं, कोई अंत नहीं, सच कहूँ तो अंतहीन सौम्यता,
अनंत शालीनता..
यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मेरा अन्तर्मन स्पंदन करता है, हर व्यतीत हुए क्षण के साथ, मेरे प्रेम के लिए मेरा प्रेम अग्रसर होता जा रहा है…
जब मैं अपने प्रेम की आँखों में देखता हूँ, नभःशोभिनी से भरा मेघाच्छन्न आकाश हमारे लिए मेघपुष्पों की आस्तरण बिछा देता है…
जब भी होता हूँ मैं अपने प्रेम के साथ ऐसा लगता है जीवन का कुछ और अभिप्राय नहीं…
तुम्हारा सौम्य, सुकोमल, मर्मस्पर्शी स्नेहिल स्पर्श,
आआअह्ह्ह्हह….
इससे अधिक विक्षिप्त, बावला, दीवाना, उन्मत्त
कभी नहीं हो सकता मैं…
मेरा प्रेम मुझे इतना जीवंत अनुभव कराता है, मेरा अंतर्मन प्रफुल्लित हो उठता है, मेरे प्रेम ने मेरा जीवन ही परिवर्तित कर दीया, यह मेरे लिए एक दिव्यस्वप्न के सच होने जैसा है, हमारा प्रेम इतना अगाध हो गया है, मैं इसके इस स्वरूप से स्तब्ध हूँ, अचंभित हूँ…
यह मुझे निषिद्ध और तप्त रखता है, जैसे तुमने कोई अलौकिक, अद्भुत, मंत्र पढ़ दिया हो…
हमारा सुकोमल हृदय एक सुर में स्पंदन करता है, नित्य एक मृद आश्चर्य, विस्मय प्रेम हमें स्वच्छंदता प्रदान करता है…
जो नित्य सूर्यरश्मियों के साथ आलौकिक एवं दीप्तिमान होता है….
भले ही हमारे मध्य विवाद, वैमनस्य, भिन्नता आई हो, हम निरंतर कोई न कोई पथ प्रशस्त कर ही लेते हैं, प्रेम को और भी दृढ़, सशक्त, पुष्ट, बनाने के लिए…
हमारा प्रेम एक पवित्र अग्नि है, या एक ऐसे हवन कुंड की धूनी जो कभी निस्तेज,कांतिहीन
नहीं होती…
हमारा प्रेम स्थिर है, अनवधि अहर्निश….