*"अर्धांगिनी संग प्रेम मोती"*
प्रेम का दीप जले प्राण में,
छवि बसी हो जो हर जान में।
वह अर्धांगिनी मेरी साधना,
संगिनी बनी हर आराधना॥
नयन-नयन में स्वप्न रचे हैं,
हर्ष-विषाद सभी सहे हैं।
कर में कर जब उसका आया,
जीवन ने मधुबन अपनाया॥
शब्द नहीं जो भाव कहें,
हृदय-पटल पर चित्र रचें।
वह मोती है, उज्ज्वल श्वेता,
हर श्वासों की प्रिय गाथा॥
संग चलें तो राह सुहानी,
छाया लगे तपती रवि-धानी।
हर संकट में ढाल बनी वह,
ममता की साकार धनी वह॥
संयोगों की वह सरगम है,
प्रेम-गीत की मधुर लय है।
उस संग जीवन सहज बहे,
हर पल मधुरिमा में ढले॥
हे विधाता! वंदन मेरा,
रच दिया जो संग बसेरा।
अर्धांगिनी वह दीप जले,
प्रेम मोती में स्वप्न पले॥