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28 Jul 2025 · 1 min read

बीते समय का जर्जर पुल वो, और नीचे बहती यादों की कश्ती,

बीते समय का जर्जर पुल वो, और नीचे बहती यादों की कश्ती,
हर दिन भींगते पाँव वहाँ मेरे, क्या छींटें तुम तक भी पहुँचती।
मन की लहरों में ज्वार है उठता, जो संयोग के क्षणिक आस को रचती,
आँखों में दर्द कहकहे लगाते, और होठों पर होती मुस्कान की गश्ती।
इस घाट के शाश्वत इंतज़ार में भी, ऋतुएँ कहाँ एक सी सजती,
दृश्य तो हर पल बदल रहे हैं, इक यादें हीं हैं जो रूककर, एक सी मिलती।
जहां यादें हीं नहीं, मिलो तुम भी मुझसे, क्या बसी है कहीं, कोई ऐसी बस्ती,
या है ये छलावा कोरे से मन का, जो आँखें तो खोलती, पर फिर भी ना जगती।
टूटे हृदय के स्वप्न बह रहे, क्या सागर की गोद में समाएगी ये हस्ती,
तुम लहराते हुए मिलोगे वहाँ मुझे, या होगी वहाँ भी लकीरों की सख्ती।

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