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20 Jul 2025 · 1 min read

काश बदलती ऋतुओं संग, मौसम मन का भी बदल जाता,

काश बदलती ऋतुओं संग, मौसम मन का भी बदल जाता,
बहुत समय से धूप खिली है, संग छाँव लिए कोई बादल आता।
जल रही है चिता कई, और यादों की उड़ रही राख है,
हृदय के इस बंजर शमशान को, सैलाब कभी तो छू पाता।
धंसी हैं बातों की कीलें, कठोरता के दरारों में,
मन की मृदा मृदु हो जाती, वो बरसात कोई ले आता।
वो चेहरे जो बोझिल करते, स्मृतियों को मेरी दूषित करते,
उखड़ जाते वो संवेदन धरा से, जो प्रबल जलधार उसे बहाता।
नाम के रिश्ते, मौन सा संयम और पीड़ा में उपचार ढूंढता मन,
हर क्षण बढ़ते इस आदत से, कोई बाँध टूट कर हमें बचाता।
एक बीज़ नया फिर गर्भ में फूटे, कुछ शाख पुनः हरित हो जाते,
तृष्णा भी मृग की क्षीण हो जाती, कोई सावन ऐसा अधरों को डुबाता।
हृदय के स्थिर ऋतुओं में, बदलाव कभी जो आ पाता,
यूँ धारासार बारिश हो जाती और नवजीवन फिर मुस्काता।

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