तुम सफर उजालों का करो, मुझे अंधेरों में खो जाने दो,
तुम सफर उजालों का करो, मुझे अंधेरों में खो जाने दो,
तुम सूरज के अपने बने रहो, मुझे सितारों का हो जाने दो।
मेरा अक्स है प्यासा, इसे बारिशों को भींगोने दो,
है बेचैनियों में भी भटकाव, इसे कस्तूरी ढूंढ लाने दो।
मैं सागर में नहीं उतरी, मुझे अपनी कश्ती बहाने दो,
तुम सजदे साहिलों के करो, मुझे गहराइयों को डुबाने दो।
तुम नाम की धरोहरें रखो, मुझे गुमनामी के बहाने दो,
बड़ी मीठी है ये तन्हाई, इन्हें नींदों के सिरहाने दो।
तुम सृजन वाक्यों का करो, मुझे अंतराल हो जाने दो,
जो अवयक्तता निःशब्द रही, मुझे उस गूंज को रिझाने दो।
जो पर्वत्तों पर ठहरी सिसक रही, मुझे उन हवाओं को मनाने दो,
तुम खिड़कियाँ घर की बंद करो, मुझे तूफां हो जाने दो।
तुम परार्थ समझो, मुझे स्वार्थ को अपनाने दो,
तुम सबसे मिलकर रहो, मुझे बस खुद को, खुद से मिलाने दो।