*बारिश की बूॅंदों को देखो, क्या अद्भुत नर्तन है (गीत)*
बारिश की बूॅंदों को देखो, क्या अद्भुत नर्तन है (गीत)
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बारिश की बूॅंदों को देखो, क्या अद्भुत नर्तन है
1)
टप टप टप टप करतीं अक्सर, यह घोड़े-सी चलतीं
किसी मधुर यात्री के जैसे, आत्ममुग्ध हो ढलतीं
भरी हुई इन जल बूॅंदों का, गहरा निर्मल मन है
2)
कभी चाल बिल्कुल रुक जाती, नववधु-सी शर्मातीं
कहते हैं ‘झल्ला’ पड़ता है, जब यह कदम बढ़ातीं
घूॅंघट मानो ओढ़ लिया है, दिखता परिवर्तन है
3)
मद्धिम चाल चली तो मस्ती, भर-भर कर लहरातीं
कई कई दिन-रात निरंतर, सबसे लाड़ लड़ातीं
सफर अनोखा यह बूॅंदों का, इनमें अपनापन है
बारिश की बूॅंदों को देखो, क्या अद्भुत नर्तन है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451