लोग को सँवारते- वृद्धि समानिका छंद
लोग को सँवारते- वृद्धि समानिका छंद
लोग सोचते यहाँ, मौन धूर्तता करे।
छोड़िए हमें अजी, कौन मूर्खता करे।।
आइए बता रहे, दंभ जो सभी भरे।
घात भी वही किया, मान जो कभी करे।।
कोसते हमें यहाँ, आज लोग हैं सभी।
राह जो नवीन है, शौक भी लगी अभी।।
रोष खूब आ रहा, दोष ढूंढते तभी ।
क्या करें विचारते, बोलते न वाह भी।।
राम के समान हीं, पाँव शूल धारते।
कौन साथ में खड़ा, राह को निहारते।।
प्रेम के पथी बने, आह में गुजारते।
चैन त्यागना पड़ा, लोग को सँवारते।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978