विश्वास 💞
हम इंसान हैं, और इंसानियत का एक बड़ा हिस्सा भावनाओं से जुड़ा होता है, जब हम किसी को सच बताते हैं, तो उसमें साहस होता है; पर जब हम झूठ बोलते हैं, तो अक्सर उसके पीछे कोई डर, कोई चिंता या किसी अपने को तकलीफ़ से बचाने की कोशिश छुपी होती है….
कई बार हम अपने प्रियजनों को दर्द से बचाने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं…
लगता है, “अगर अभी सच कह दिया, तो उन्हें ठेस पहुँचेगी”, या “ये बात जानकर वो दुखी हो जाएंगे”…
उस पल में हमारा इरादा गलत नहीं होता….
हम बस किसी को तकलीफ़ से बचाना चाहते हैं…
पर यही झूठ, जब वक्त के साथ परतें खोलने लगता है, तो रिश्ते की नींव हिलने लगती है….
झूठ, चाहे वह कितना भी मासूम क्यों न हो, भरोसे की जड़ों में धीरे-धीरे जहर घोलने लगता है..
रिश्तों की सबसे मजबूत कड़ी विश्वास होती है और जब विश्वास टूटता है, तो रिश्ता भले ही बाहर से साबुत दिखे, अंदर से बिखरने लगता है…
सच को छुपाना, कई बार एक आसान रास्ता लगता है, पर ये रास्ता रिश्तों को लंबी दूरी तक नहीं ले जा पाता…
समय के साथ जब झूठ सामने आता है, चाहे किसी इत्तेफाक से या किसी सवाल-जवाब के बीच, तो सामने वाला सिर्फ उस एक बात से नहीं, बल्कि उस छुपाए गए भरोसे से भी टूट जाता है….
तब वो सोचता है, “क्यों नहीं बताया?”, “क्या मैं इतना अजनबी था ?” और ये सवाल रिश्तों को कचोटते हैं….
इसलिए ज़रूरी है कि हम सच्चाई को शब्दों में ढालना सीखें….
संवेदनशीलता से, स्नेह के साथ….
हो सकता है, सच थोड़ा कड़वा हो, पर जब वह अपनेपन के साथ कहा जाए, तो वह रिश्तों को और मजबूत बना सकता है…
रिश्ते फूलों की तरह होते हैं, उन्हें प्यार, ईमानदारी और समझदारी से सींचना पड़ता है… झूठ से उन्हें थोड़ी देर की छांव तो मिल सकती है, पर वह सूरज की रोशनी नहीं, जो उन्हें जीवित रखे…
कभी-कभी झूठ हमें आसान रास्ता दिखाता है, पर सच्चाई ही वह पुल है जो दो दिलों को जोड़ कर रखती है….
अगर हम अपने रिश्तों को सच्चे मन से निभाना चाहते हैं, तो हमें यह सीखना होगा कि सच को कैसे कहना है….
क्योंकि रिश्तों को बचाने के लिए झूठ नहीं, बल्कि विश्वास चाहिए….
💞💞💞💞💞💞💞