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27 Jun 2025 · 1 min read

आदमी क्यों परेशान है, ये सवाल बड़ा पुराना है,

आदमी क्यों परेशान है, ये सवाल बड़ा पुराना है,
भीड़ में भी तन्हा होकर, ढूँढ रहा वो ठिकाना है।

चाहतें अनगिन लादे है, दिल फिर भी वीराना है,
मुक़द्दर से लड़ता रहता, हर साँस में अफ़साना है।

नींदें हैं अब बोझ सी, ख्वाबों का गुम ख़ज़ाना है,
सपनों की मंज़िल दूर सही, हौसला भी अब थकाना है।

रिश्ते बनते, टूटते हैं, हर मोड़ पे इक बहाना है,
ज़िंदगी की इस दौड़ में, सुकून सबसे अनजाना है।

फिर भी चलता जाता है, शायद यही फ़साना है,
आदमी क्यों परेशान है, ये समझना इक दीवाना है…!!!!

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