"दो राहें, एक पथ"
उस दिन सूनी राह मिले जो हम दोनों,
दो साँसें, एक जाँ बन बैठे हम दोनों।
कहने वाला न कोई था,
बोल रहीं थीं साँसें;
सुनने वाले हम दोनों थे,
डोल रहीं थीं आँखें।
उस दिन दूनी चाह लिए जो हम दोनों,
दो नैनों की “हाँ” बन बैठे हम दोनों।
तू थी एक कहानी आधी,
मैं भी आधा गीत था;
प्रेम की गीता भी थी आधी,
आधा प्रीत का मीत था।
उस दिन धूलि-सी शाम मिले जो हम दोनों,
दो फाँसों को “ना” कह बैठे हम दोनों।
अब सपनों में तेरी सूरत,
हिय-दर्पण में तेरी छवि है;
मन में अब तेरी ही मूरत,
जिय-धड़कन में तेरी प्रवि है।
अब तो प्रेम-पनाह लिए जो हम दोनों,
दो राहें, एक पथ बन बैठे हम दोनों।
✍️ कुँवर सर्वेन्द्र विक्रम सिंह
★©️®️ स्वरचित रचना
★सर्वाधिकार सुरक्षित