जो था मुक़ाबिल, उसे शाबाशी का ताज़ पहनाया।
जो था मुक़ाबिल, उसे शाबाशी का ताज़ पहनाया।
और जो था मक़बूल, उसे नज़रों से गिराया।।
अज़ब सितम हैं तेरे इस ज़माने का मौला।
की सच और झूठ के बीच का फ़ासला क्यों कोई जान नहीं पाया
मधु गुप्ता “अपराजिता”