'सुनो न'
मैं रहना चाहती हूॅं
तुम्हारे आसपास..
पायल की रूनझुन की तरह
विचारों के जंगल में
सुकून के चंदन की तरह
मैं रहना चाहती हूॅं
तुम्हारे चेहरे पर
अपनी उॅंगलियों की छुअन की तरह
या
आलता रॅंगे पाॅंवों के
धरा पर छूटे
निशान की तरह!
हाॅं!
मैं रहना चाहती हूॅं
तुम्हारे आसपास..
जैसे थिरकता रहता है
नदी का जल
पत्थरों पर,
चुपचाप!
रश्मि ‘लहर’
लखनऊ
उत्तर प्रदेश