रुसवां हम तुमसे इतना------- ?
(शेर)- सोचता हूँ यह दोष किसका कहूँ, अपना या अपनों का।
आखिर कोई तो वजह है कि, टूटा है दर्पण मेरे सपनों का।।
बेवफा वो हुए या हम, कौन खता ऐसे रिश्तों में करता रहा।
ना अब वो हमारे हैं, ना रहे हम लहू अब उनके रगों का।।
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रुसवां हम तुमसे, इतना नहीं ऐसे होते।
बेख़बर तुम यदि, हमसे नहीं ऐसे होते।।
रुसवां हम तुमसे——————।।
सोचा था हमने तो, तुम निभावोगे रस्में।
तोड़ोगे तुम नहीं कभी, हमसे अपनी कसमें।।
मगर तुम तो निकले, बड़े ही मतलबी ऐसे।
दगा तुम यदि , हमसे नहीं ऐसे करते।।
रुसवां हम तुमसे——————।।
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(शेर)- आज मेरा बुरा वक़्त है, इसलिए तुम साथ नहीं दे रहे हो।
यह भी कोई लहू का रिश्ता है, कि पूछते नहीं, तुम कैसे हो।।
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बुरे हैं दिन मेरे यार, बुरा है नसीब मेरा।
मंजिल मेरी कहाँ है, कब होगा सवेरा।।
इस मुसीबत में भी, मुझको लूटा है जिसने।
साथ तुम यदि, उनका नहीं ऐसे देते।।
रुसवां हम तुमसे—————–।।
जरूरत नहीं थी मुझको, तेरे खजाने की।
तमन्ना थी दिल की, तेरी मोहब्बत पाने की।।
मुझको कब माना तुमने, अपने जिगर का टुकड़ा।
मुझको यदि तुम, गैर नहीं ऐसे समझते।।
रुसवां हम तुमसे——————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)