पर्दादारी
हमने परर्दो के पीछे भी परदे लगा रखै है
पता नही इनके पीछे क्या राज़ छुपा रखे है?
कोई एक उठा कर झँ|क भी ले तो क्या?
हमने अपने दर्द , भी दर कैद छुपा रखे है!!
कैसे और क्यू करै हम उजागर दर्दे दिल,
मरहम की जगह लोगो ने नश्तर चुभा रखे है!!
यह जख्म भी गैरो ने नही,अपनो ने दिए है,
अपनो को शर्म नही,गैरो से गिला बना रखे है!!
हो रिवायतें कितनी पुरानी,पर है अपनी ,
पुरानी रिवायतो,विदेशी चश्मे चढ़ा रखे हैं !!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकट.कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजँ,सिकँदरा,आगरा -282007
मो :941244303