गणपति देवा आपसे
गणपति देवा आपसे ,विनती बारम्बार।
उचित पंथ मुझको दिखा,करिए कृपा अपार।
करिए कृपा अपार, ज्ञान भी समुचित दीजै।
द्वेष-दर्प का भाव,दूर मुझसे श्री वर कीजै।
करूँ काव्य शृंगार, रहे मेरी ऐसी मति।
ज्ञान बुद्धि अरु काव्य,बसे मेरे मन गणपति।।
डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम