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16 Jun 2025 · 1 min read

मिलती खुशी अपार

कंचन कुंडल कान में, कुमकुम टीका माथ।
गल में पहनें नौलखा, स्वर्णिम कंगन हाथ।।

कमर करधनी सोन की,चाँदी पायल पैर।
रत्नजड़ित कर चूड़ियाँ, जूड़ा फूल कनेर।।

टीका माथे नीलमणि,गल मोती का हार।
कर में बाजूबंद है, भौंह कमानीदार।।

साड़ी जरदारी पहन,कर सोलह श्रृंगार।
ओठ गुलाबी रंग कर,नयना काजल डार।।

चंचल चितवन बोल मृदु,हिरनी सी है चाल।
गोरे-गोरे गाल है, नागिन जैसे बाल।।

गागर में भरने चली, पीने खातिर नीर।
देख रूप को आ गए,कौऐ सारे तीर।।

निरख रूप उस नारि का, करें लोग यह बात।
किसके घर की है बहू,शोभा बरनि न जात।।

पहले देखा है नहीं,इतना सुन्दर रूप।
काले कजरारे नयन, सुन्दर रूप अनूप।।

काश हमारे पास भी,होती ऐसी नारि।
सारी दौलत पैर में, उसके देता डारि।।

बड़ भागी है वो मनुज, जिसे मिली यह नारि।
कोमल काया गौर तन,सकल सुखों की सारि।।

मीठी वाणी बोलकर,चल दी अपने गेह।
छोड़ गई मेरे हृदय,जानें कितना नेह।।

सुन्दर नारी देखकर,खो देता नर चैन।
अपनी जाया छोड़कर,रहता है बेचैन।।

अपनी जाया से अगर,इतना करते प्यार।
जीवन हो जाता सुखद,मिलती खुशी अपार।।

स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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