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16 Jun 2025 · 1 min read

सोचता हूं कभी बोलेगी छत अपनी

सोचता हूं कभी बोलेगी छत अपनी
सोचता हूं कभी बदलेगी रुत अपनी
वो मैदान, दीवार, कैंटीन, वो क्लास
सूखे फूल, किताब, खत और लत अपनी।।
सूर्यकांत

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