बेटियां
बेटियां ०००००
जन्म के समय संघर्ष के साथ, दुनिया में आती है बेटियां,
जन्म के साथ पैरों में लाखों बंदिशों से बंध जाती है , बेटियां,
शुरू से ही बेटियां घर पर बोझ कहलाती है ,
शिक्षा में भी भेदभाव सहती है बेटियां ।
बेटे प्राइवेट में, बेटियां सरकारी में पढ़ने जाती है,
जब पन्द्रह की होती है बेटियां तब वो ,
बाप की चिंता बन जाती है ,
घर या बाहर जहां भी रहती है, बेटियां
चुप –चाप कर सब कुछ सहती है ।
अगर बाहर घूमें देर रात तक तो,
समाज में कलंकित हो जाती है, बेटियां ,
जब अठारह की हुई तो उसके सपनो चूर किया,
बोझ समझकर सबने अपने ही घर से दूर किया,
सिसक– सिसक के रोती है ,
अपनों से दूर होने का दुख सहती है,बेटियां,
बाबुल का घर छोड़ , पिया घर जाती है ,
बहू का कर्तव्य दिल से निभाती है बेटियां,
मायके, ससुराल दोनों का फर्ज निभाती है,
मां बनने पर हजार हड्डी टूटने का दर्द सह जाती हैं,बेटियां,
मां बनकर आपने बच्चों पर ,जीवन भर प्यार लुटाती है बेटियां,
बुआ,चाची,दादी,नानी, बनकर रह जाती है बेटियां,
इस प्रकार अपना अस्तित्व खो जाती है बेटियां ।
कवि–अमन कुमार
मो. न.–6200992545
(डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर, मध्यप्रदेश)