मधुर मुलाक़ात के लिए
अपनी चाल में
धीरे-धीरे मुड़ती
ये बलखाती नदियाँ,
खेतों की लटों को सँवारती
सरसराती हवाएँ,
कोई मीठी शैली लिए
अंबर से बतियाते दरख़्त,
और सुकून ओढ़े
वो पहाड़ी छायाएँ।
स्वाभाविक क्रम में
उड़ते पंछियों की टोली,
चाँद के स्वागत में
ढलती सुरमई ये संध्या।
हर मोड़ पर मानो
कोई पुकारता है मुझे—
प्रकृति की बाँहों में
एक मधुर मुलाकात के लिए l
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल