दिल सुनेगा नही
खुशी में आंसू बहाना पड़े
ग़म में यदि मुस्कुराना पड़े
समझ लो मोहब्बत की राहो में हो
नाम अपना अगर भूल जाना पड़े।
चांद झरोखे से आया नज़र
याद दिल को तेरी आई रात भर
चांदनी चिढ़ाकर चली गई
यूं लगा जैसे तबियत छली गई।
सांझ ढलने को आई चले आओ
रूठ जाएंगे हमको न इतना रुलाओ
मिलने का वादा किया है अगर
आके जल्दी से अपना वादा निभाओ।
दिन कटेगा नही मन लगेगा नही
हाल होगा बयां कुछ छिपेगा नही।
कैसी उलझन में हूँ कुछ न सूझे मुझे
दिल को समझाऊं दिल सुनेगा नही।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’