*सार यही समझो जीवन का, दो ऑंसू मुस्कान (गीत)*
सार यही समझो जीवन का, दो ऑंसू-मुस्कान (गीत)
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सार यही समझो जीवन का, दो ऑंसू-मुस्कान
1)
चली यंत्रवत मिट्टी की यह, देह सदा भटकाती
कभी लगा खुशियों में डूबी, कभी दुखों को गाती
पल-पल रंग बदलना इसकी, पाई नित पहचान
2)
बचपन बीता खेल-कूद में, क्या खोते क्या पाते
क्षण से ज्यादा किसी दौर में, खुद को कब ठहराते
किसने सोचा था तब होगा, कभी शयन शमशान
3)
यौवन बीत गया दो पल में, गहन बुढ़ापा देकर
कदम-कदम इसमें चलते हैं, लाठी मोटी लेकर
आया समझ विधाता ने क्या, अद्भुत रचा विधान
सार यही समझो जीवन का, दो ऑंसू मुस्कान
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451