मुक्तक
मुक्तक
———
रात ढलकर सुबह की कली खिल गई।
जिसको ढ़ूढ़ा बहुत वह गली मिल गई ।
प्रिय जब से बंधे हम प्रणय सूत्र में,
मानो कानन में मुझको मणी मिल गई।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)
मुक्तक
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रात ढलकर सुबह की कली खिल गई।
जिसको ढ़ूढ़ा बहुत वह गली मिल गई ।
प्रिय जब से बंधे हम प्रणय सूत्र में,
मानो कानन में मुझको मणी मिल गई।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)