नवनिधि क्षणिकाएँ---
नवनिधि क्षणिकाएँ—
27/05/2025
कल तक चंदन की शीतलता थी
भावनाओं में भी निर्मलता थी
ये अचानक क्या कुछ हो गया
जैसे इन सबको लू लग गई हो।
अर्चन नमन भजन छोड़कर
बैठा हूँ स्वमूल्यांकन करने
क्या मैं सचमुच इतना बुरा हूँ
जो खतरे से आगाह कर दिया।
जाग रही है विभावरी
पुष्प भी पुष्पित हो गये
हवाओं ने दिशाएँ बदली
तू अब भी वहीं खड़ा है क्यों।
फिर एक जवान शहीद हो गया
आया गाँव तिरंगे में लिपटा हुआ
शासकीय स्मारक बनाये जायेंगे
फिर होगी वोटों की गंदी राजनीति।
बंद कमरे में जाग रही है लेखनी
चल रही है बहकी सी बेहोशी में
बड़ी मायूस है बहुत सोचती है
कल किसी ने जो लिखा ‘अलविदा’
कब मेहनत का उचित मुआवजा मिले
कब इन सूखे होठों की प्यास बुझे
वो आज ही सुबह कहकर गया है
मैं बहुत जल्द तुम्हें खुश कर दूँगा।
नाम लेकर सोता हूँ
नाम को देखता स्वप्न में
जहाँ जिधर देखती हैं आँखें
तेरा नाम ही पढ़ती है रसना।
मन को नियंत्रित कर
चल साधना पथ पर
छूना है ऊँचाइयों को
तू निराश मत हो
तेरा भी दिन आयेगा।
आग जो लगी है मन में
खुद को मत जला इतना
वजूद ही खतरे में आ जाये।
देखो आसमान के पंछियों को
धरती से बहुत दूर जा चुके हैं
ऐसी ही यात्रा के लिए खुद को
तैयार करना है तुझे भी दोस्त।
इन चिरागों को मत बुझा
यही पता देंगे अँधेरी रात में
चूहे का दिल मत रख
तू शेर है इस जंगल का
खुद को पहचान पगले
किसकी संगत में बिगड़ गया तू।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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