अविनाशी हूँ
………. अविनाशी हूँ………
भटका दें हवाएं मुझे
रोक लें शिलाएँ मुझे
डुबा दें चाहे लहरें मुझे
खड़ा हूँ मैं कर्म पथ पर
अडिग हूँ मैं लक्ष्य पथ पर
मानव हूँ मानव की बात करता हूँ
राही हूँ सत्य पथ पर चलता हूँ
प्रलोभन बाधक नहीं मेरे
स्वयं के विकल्प पर रहता हूँ
अपने संकल्प के साथ रहता हूँ
स्वाभिमान ही पूंजी है मेरी
करूँ क्यों व्यर्थ की तेरी मेरी
माना कि तमस भरी रात घनेरी
तब भी कहाँ प्रभात की देरी
मैं स्वयं के साथ ही चलता हूँ
अपने ही निर्णयों के साथ रहता हूँ
अनुयायी नहीं मैं किसी पंथ का
स्वरूप हृदय में उस एक कंत का
भटकता फिरूँ क्यों विचार धाराओं में
सिंधु जल ही भरा जब हर आत्माओं में
नश्वर नहीं मैं तो अविनाशी हूँ
रहा, हूँ और कल का भी निवासी हूँ
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डॉ. मोहन तिवारी, मुंबई