*पैर नहीं होते हैं जिनके, कैसे जीते होंगे (गीत)*
पैर नहीं होते हैं जिनके, कैसे जीते होंगे (गीत)
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पैर नहीं होते हैं जिनके, कैसे जीते होंगे
1)
सड़कों पर दोनों पैरों से, चलते अनगिन पाते
दौड़ लगाते हुए पार्क में, बच्चे सम्मुख आते
तार-तार दिल होता होगा, कैसे सीते होंगे
2)
बैसाखी थामे हाथों में, चलना भी क्या चलना
दो पग चले कोस सौ जैसे, दिनचर्या यह खलना
धन-दौलत के ढेर भले हों, भीतर रीते होंगे
3)
सबको ही दो पैर दिए हैं, प्रभु ने सुंदर काया
बचपन से ही घुटनों के बल, सबको चलना आया
लिए अधूरे पैरों का विष, कैसे पीते होंगे
पैर नहीं होते हैं जिनके, कैसे जीते होंगे
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451