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28 Feb 2020 · 1 min read

भूख

भूख
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(1)
ये चोला भूख से कैसे तरसे,
दुख नयन से अश्रु बरसे।
नहीं है पहनने के लिए कपड़े,
कैसे चले ये जीवन के लफड़े।
(2)
नहीं मिला माता पिता का साया,
गम के सिवा कुछ नही पाया।
अनजान हूँ इस दुनिया में,
मुझ गरीब को बहुतों ने ठुकराया।
(3)
मजबूर हूँ भीख माँगना,
छोटा सा अभी बच्चा हूँ।
सच कहूँ बाबू जी,
जीवन के खेल में कच्चा हूँ।
(4)
छोटा सा मेरा भाई को,
कहाँ कहाँ उसे घूमाऊँ।
खाने का कुछ दे दे बाबू जी,
इसका भूख तो मिटाऊँ।
(5)
जीवन से थक हार चुका,
कोई तो अपना लो।
बेटा मुझे बना लो,
जीने की राह बतलाओ।
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रचनाकार – डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. ‌812058782

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