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17 May 2025 · 1 min read

*क्षण-भंगुर जीवन मिला, दो सॉंसों की डोर (दोहे)*

क्षण-भंगुर जीवन मिला, दो सॉंसों की डोर (दोहे)
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1)
क्षण-भंगुर जीवन मिला, दो सॉंसों की डोर।
अरे-अरे आई निशा, अभी हुई थी भोर।।
2)
अभी-अभी सूरज उगा, अभी हो गई शाम।
जग-वालों स्वीकार लो, राम राम जय राम।।
3)
खेल-खिलौने चल रहे, चाबी से दिन-रात।
जब तक इन में सॉंस है, समझो बस सौगात।।
4)
सॉंसों का सुर चल रहा, बजते सौ-सौ साज।
कब रुक जाऍं क्या पता, कब रूठे आवाज।।
5)
अत्याचारी मत बनो, करो नहीं अभिमान।
अर्थी पर जाना लिखा, सबको ही शमशान।।
6)
चलती है तो चल रही, गाड़ी इसका नाम।
राम नाम फिर सत्य है, हर तन का परिणाम।।
_________________________
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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