नहीं मारता मैं तुझको,जा मोदी को बता देना
छूटी न थी हाथों की मेंहदी, सिंदूर तरोताजा था
बाकी थे रस्मोरिवाज,कंकन अभी खुला न था
स्वर्ग से सुंदर घाटी में,हम हनीमून को आए थे
पहलगाम की वादी में , खुशियों के अरमान सजाए थे
एक दूजे में खोए हुए हम, प्रकृति की छटा निहार रहे थे
लेटी थी मैं गोद में उनके,वो मेरी जुल्फें संवार रहे थे
पल भर में ही चलने लगी गोलियां, कुछ नहीं समझ में आया
इसी बीच एक बंदूक धारी, पास हमारे आया
पूछा पति से नाम धर्म, गोली से उन्हें उड़ाया
पल भर में ही लूट ली दुनिया, हिन्दू होना न भाया
काफ़िर कहकर मार दिया, जन्नत का ख्वाब सजाया
अरे नराधम नीच,ओ पापी, मानवता के हत्यारे
तुझको भी ऐसी सजा मिले, दुनिया में आतंक बचे न रे
जलता रहे आग में पल पल, नामो-निशान रहे न रे
दर्दनाक हो मौत तेरी भी, मांगे मौत मिले न रे
मेरा सर्वस्व मिटाया तूने,मुझको भी मार दे गोली
लिपटी हुई लाश से पत्नी, अश्रु वहाते बोली
अब जीकर क्या करूंगी,मेरा इस दुनिया में बचा क्या रे
नहीं मारता तुझको मैं,तू जा मोदी से कहना
ऐसे ही मारेंगे काफिर हम, कहां है ५६ इंच का सीना ?
सुरेश कुमार चतुर्वेदी