"आपरेशन सिन्दूर" पर विशेष-"ग़ज़ल"
है नया भारत, यहाँ पर इक से इक जाँबाज़ हैं,
सोफ़िया थलनायिका, तो व्योमिका परवाज़ हैं।
जो बुरी नज़रों से देखे, माँग के सिन्दूर को,
जाँ से धोए हाथ, महिला के नये अन्दाज़ हैं।
अब न हो आतँक, ना हो देशद्रोही की ही ख़ैर,
देश के हर शख़्स के, बदले हुए से मिज़ाज हैं।
पाक मेँ घुसकर किए हैं, ध्वस्त आतंकी महल,
ना मरें पर नागरिक, रखते सदा ही लिहाज़ हैं।
रास्ता हरगिज़ डिगे ना, आरज़ू सब की यही,
ज़ीस्त मेँ तुमको अभी, चढ़ने कई मेराज हैं।
हौसले हैं पस्त, दुश्मन के, कि क्या अँजाम हो,
देखते जाओ, अभी तो, बस हुये, आग़ाज़ हैं।
दुष्ट लोगों की भले, कब है कमी, सँसार मेँ,
दिल मेँ अपने तुमको पर, रखने हज़ारों राज़ हैं।
देश को है, वीर-बालाओं से, अब आशा बहुत,
क्या लिखूँ कितना लिखूँ, कम पड़ रहे, अल्फ़ाज़ हैं..!
ज़ीस्त # ज़िन्दगी, life
मेराज # सीढ़ी, ladder
आग़ाज़ # शुरुआत, beginning
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