Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
6 May 2025 · 1 min read

यादें

सोचा नहीं था कि उन्हें भूल पाएंगे कभी।
भूले तो हम आज भी नहीं, पर उनकी यादों में डूब जाए इतनी फुर्सत में भी नहीं।
दिल के किसी कोने के कमरे में बंद वह आज भी है, जो कभी-कभी खिड़की खोल के आता- जाता है हमारे जहन में ।
एक अजीब सा डर है उनके जहन में आ जाने का ,
इसीलिए उस कमरे की खिड़की तो छोड़ो उसके रोशनदान से भी दूर रहते हैं हम।
कुछ जख्म भरते नहीं है, तो उन्हें छोड़ दिया जाता है।
इसी तरह कुछ यादों को यादों में ही छोड़ दिया जाता है।
काश की मन का वह दरवाजा ना खुले कभी,
जिस दरवाजे में बंद है यादों के पिटारे सभी।
दरवाजे पर लगा के ताला, चाबी को फेंक दिया जिम्मेदारियों के तालाब में ।
मगर उस बंद दरवाजे की सुराख़ों में से गुजरने वाली हवा के साथ
यादों की खुशबू आ ही जाती है पास मेरे।

Loading...