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30 Apr 2025 · 1 min read

सिर्फ़ तुम

सिर्फ़ तुम

इन बहारों में बसी हो तुम।
सामने हर पल खड़ी हो तुम।।
अब अकेला मैं नहीं लगता,
साथ मेरे ही बँधी हो तुम।।

चल यहीं पर आशियाना है,
उस गुलिस्तां में सजी हो तुम।।
रौनकें आबाद जिनसे हैं,
खूबसूरत इक हँसी हो तुम।।

ढूँढ़ते गुजरे जमाने भर,
मुद्दतों में यूँ मिली हो तुम।।
आग दिल की अब धधकती है,
तुम बुझाओ इक नदी हो तुम।।

आसमाँ में उड़ रहा हूँ मैं,
जानता मेरी जमीं हो तुम।।
दूरिया अब मिट गई सारी,
हाँ यहीं हो हाँ यहीं हो तुम।।

— डॉ. रामनाथ साहू ‘ननकी’

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