मुक्तक _

मुक्तक _
दर्द मिलते हैं कई, हर शाम सायों की तरह ,
ये गुज़रते हैं, तहज्जुद की दुआओं की तरह ,
ग़म की शाखों पर ठहरती शबनमी बूंदे कभी,
नाम ज़िंदा ही रहा ,अहले वफाओं की तरह ।
✍नील रूहानी
मुक्तक _
दर्द मिलते हैं कई, हर शाम सायों की तरह ,
ये गुज़रते हैं, तहज्जुद की दुआओं की तरह ,
ग़म की शाखों पर ठहरती शबनमी बूंदे कभी,
नाम ज़िंदा ही रहा ,अहले वफाओं की तरह ।
✍नील रूहानी